आज बहुत दिनों बाद घर जाना हुआ | घर से मतलब है गांव | जैसे ही हम लोगों ने घर में प्रवेश किया मेरी बेटी ने घर में पीछे की ओर दौड़ लगा दिया | उसके पीछे पीछे मैं भी चल पड़ा | घर के पिछला हिस्से कि ओर बहुत से पेड़ लगे थे जिनमें आम , जामुन, नींबू, संतरा , केले ,कटहल ,पपीता आदि फलदार वृक्ष भी थे | मेरी बेटी जोर से चिल्ला उठी पापा वह देखो चिड़िया, छोटी सी चिड़िया ! पापा यह कौन सी चिड़िया है? हमें यह शहर में क्यों नहीं दिखती है? देखो पापा यहां कैसे फुदक रही है? बताओ ना पापा? उसके सवालों से मुस्कुरा उठा | और उसके प्रश्नों के जवाब तलाशने लगा |
मैंने कहा “बेटा यह घर चिड़िया है जिसे हम गौरैया कहते हैं, अंग्रेजी में से हाउस स्पैरो ( House sparrow ) कहा जाता है | इसका वैज्ञानिक नाम पैसर डॉमेस्टिकस (Passer domesticus ) है | यह छोटे आकार की चिड़िया है तथा घरों के आसपास पाई जाती है इस कारण से इसे घर चिड़िया भी कहते हैं | “
शहर में मकान सीमेंट के बने होते हैं और इनके लिए रहने के लिए जगह नहीं होती, फिर पेड़ पौधे भी कम होते हैं इस कारण से हमें यह शहर में दिखाई नहीं देती है | “
हालांकि मैं जानता हूं इस सामाजिक पक्षी के विलुप्त होने के पीछे केवल इतने ही कारण नहीं है | बल्कि अनेक कारण इसके लिए जिम्मेदार है | इस भौतिकतावादी युग में मानव इतना महत्वाकांक्षी हो गया है | उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रहता कि उसके अस्तित्व को बनाए रखने के लिए दूसरे जीवों का बने रहना भी जरूरी होता है |
रॉयल सोसायटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड्स के अनुसार विगत 40 वर्षों में गौरैया की संख्या में लगभग 60% की कमी आयी है |
इसके नष्ट होने के कारणों को अगर हम समझे तो –
- आवास स्थानों का नष्ट होना – इसके रहने के स्थान, पेड़ पौधों और हरियाली जो इसके जीवित रहने के लिए, घोसला बनाने के लिए, भोजन के लिए तथा घूमने-फिरने के लिए जरूरी था नष्ट कर दिए गए |
- मैच बॉक्स आकार की इमारतें- प्राचीन काल में ग्रामीण क्षेत्रों में मिट्टी के बने होते थे उनके ऊपर छत लकड़ी तथा कवेलू से ढकी होती थी | जहां पर अनेक ऐसे क्षेत्र उपस्थित होते थे जो गौरैया के
नेस्टिंग के लिए उपयुक्त होते थे | आज के मकान सीमेंट, कांच और एलुमिनियम मिश्रित पैनलों से बना होते हैं जिसमें प्राकृतिक छिद्र का अभाव होता है | ऐसे परिदृश्य में गौरैया तथा अन्य पक्षियों का घोंसला बनाना इन में उपयुक्त ही नहीं नामुमकिन होता है | - जीवन शैली में बदलाव – मानव जीवन शैली में बदलाव गौरैया के नष्ट होने का एक प्रमुख कारण है | प्राचीन काल में परिवार के बड़े सदस्यों जैसे दादा, दादी यह मम्मी बरामदा में बैठ जाते थे और अनाज साफ किया करते थे | इस प्रक्रिया से निकली हुई छोटी-छोटी इल्लियॉ तथा अन्य अपशिष्ट पदार्थों को इन पक्षियों के द्वारा भोजन के रूप में ग्रहण कर लिया जाता था | परंतु अब ऐसा नहीं होता है |
- स्थानीय पादपों का अभाव – पिछले कुछ दशकों से विदेशी प्रजातियों के पादप को लगाने का चलन बढ़ गया है | यह पादप पक्षियों तथा अन्य इंसेक्ट को आकर्षित नहीं करते है |
- रेडियो एक्टिव प्रदूषण – आज मोबाइल क्रांति के युग में मोबाइल हेतु टावरों को लगाने का चलन बढ़ गया है | लगातार ग्रहों का प्रक्षेपण चल रहा है | कंप्यूटर का चलन भी बहुत ज्यादा बढ़ रहा है | इन सभी कारणों की वजह से अनेक प्रकार की रेडियो तरंगे दिल से निकलती हैं जो इस पक्षी के बाहरी आवरण को कमजोर कर देती है | अंडो के छिलकों के कमजोर होने के कारण हैचिंग के पूर्व ही अंडे नष्ट हो जाते हैं |
- खेती के तौर-तरीकों में बदलाव – आधुनिक युग में खेती के तौर तरीकों में काफी बदलाव हो गया है | अधिक उत्पादन हेतु अनेक प्रकार के यंत्रों का प्रयोग किया जाता है साथ ही विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थों, कीटनाशक तथा उर्वरकों का प्रयोग भी लगातार किया जाता है | यह रासायनिक पदार्थ विभिन्न माध्यमों से होते हुए गौरैया के शरीर के अंदर ही खत्म हो जाते हैं | तथा उनके नष्ट होने का कारण बनते है|
जब मैंने इतने सारे कारण उन्हें गौरैया के नष्ट होने के बताए तो वह उदास हो गई | क्या हम इतने बुरे हैं? क्या इसे नहीं बचाया जा सकता | मैंने कहा बेटा हम इतने बुरे भी नहीं है | अनेक ऐसे लोग हैं जो इसके संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं | जिनमें नासिक स्थित ‘नेचर फॉर एवर’ संस्था के प्रेसिडेंट मोहम्मद दिलावर का नाम महत्वपूर्ण है | मोहम्मद दिलावर को वर्ष 2008 में टाइम मैगजीन के द्वारा चुने गए ‘हीरोज ऑफ इन्वायरमेंट ‘की फेहरिस्त में शामिल किया गया था | उन्होंने वर्ष 2010 में नेचर फॉर एवर और एक संस्था इको -सिस एक्शन फाउंडेशन के साथ विश्व के विभिन्न हिस्सों में मार्च की 20 तारीख को वर्ल्ड स्पैरो डे के रूप में मनाने की शुरुआत की थी | मेरी बेटी ने सवाल किया – यह सब तो ठीक है पापा परंतु हम इनका संरक्षण कैसे कर सकते हैं | और मैं इसका जवाब तलाशने लगा और मैंने कहा – HOW TO CONSERVE - यदि हम लकड़ी के टुकड़ों, प्लाई या खाली बोतल का इस्तेमाल करते हुए इनके लिए नेस्ट होम बनाए और इन्हें अपने घरों के आस पास पाए जाने वाले पेड़ों पर या घरों पर लटका दे तो हो सकता है गौरैया इस पर आ जाएं और अंडे देने लग जाए |
- हमें अपने घरों के आसपास पेड़ों को लगाना चाहिए, जिससे इनके आवास स्थान निर्मित हो सके|
- हमें इनके लिए घरों के आसपास किसी उचित स्थान पर इनके लिए दानों तथा पानी की व्यवस्था करनी चाहिए |
- हम अपने दैनिक जीवन में गौरैया तथा अन्य पक्षियों पक्षियों को दाना पानी खिलाते रहना चाहिए जिससे यह एक सामाजिक प्राणी एक बार पुनः वह मानव के करीब आ जाए और इसका संरक्षण हो जाए |
इन सब बातों को सुनकर मेरी बेटी के चेहरे पर चमक आ गई और बोली चलो पापा एक मकान इनके लिए बनाएं | इसमें यह आएंगी रहेगी खाएगी अंडे देंगी और चहचहा उठेगी | मैं भी सोचने लगा चलो एक प्रयास करें गोरैया के संरक्षण के लिए | क्या आप भी प्रयास कर रहे हैं | जरूर बताएं | - SOURCE –
- 1.https://www.natureforever.org/
- 2. AHA ZINDGI MARCH 21