Parthenocarpy in Plants

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BIOLOGY EXTRA
By
F. SHIV
Excellence H.S.School Katangi

Class- 12th
Subject-Biology
Unit 1 Reproduction
Chapter- पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन
Topic – अनिषेक फलन (parthenocarpy )

Synopsis

  1. परिभाषा-
  2. इतिहास
  3. पार्थेनोकार्पी का अभिप्रेरण
  4. पार्थेनोकार्पी के प्रकार
    A. बीज की उपस्थिति के आधार पर
    B. विकास की प्रकृति के आधार पर
  5. पार्थेनोकार्पी का महत्व

परिभाषा

निषेचन के बिना ही फल के निर्माण की प्रक्रिया पार्थेनोकार्पी कहलाती है |
“फल के विकास की वह क्रिया जिसमें अंडाशय (Ovary ) निषेचन की क्रिया के संपादन के बिना ही फल में परिवर्तित हो जाता है पार्थेनोकार्पी (parthenocarpy )कहलाती है तथा ऐसे फल पार्थेनोकार्पीक फल (parthenocarpic fruit ) कहलाते हैं |”

History

नॉल (Noll, 1902)- पार्थेनोकार्पी

(parthenocarpy ) अनिषेकफलन शब्द दिया |
नॉल के अनुसार पार्थेनोकार्पी परागण या किसी अन्य उद्दीपको के अनुपस्थिति में फल के विकास की प्रक्रिया है |
रिंक कलर (wrinkler-1908) के अनुसार – पार्थेनोकार्पी बिना बीज या खोखले बीज वाले फल के विकास की क्रिया को सूचित करता है |
निश्च (Nitsch, 1963) – सर्वमान्य परिभाषा देने की कोशिश की, इनके अनुसार
“निषेचन की प्रक्रिया के बिना ही अगर फल का निर्माण होता है, तो ही उस प्रक्रिया को पार्थेनोकार्पी कहा जाना चाहिए क्योंकि प्राकृतिक स्वरूप में बिना परागण के अंडाशय प्रायः फल में रूपांतरित नहीं हो पाता हैं | “

पार्थेनोकार्पी का अभिप्रेरण –

ऑक्सिन (auxin ) या जिबरेलिन (Giberelin ) का छिड़काव किया जाना चाहिए |
ऑक्सिन (auxin ) जैसे इंडोल एसिटिक एसिड (IAA), इंडोल ब्यूटीरिक एसिड ( IBA ), नेप्थालीन इंडोल एसिटिक एसिड (NAA), 2-4 डाइक्लोरो फिनाक्सी एसिटिक एसिड (2-4 D ), 2, 4 -5 ट्राईक्लोरो फिनाक्सी एसिटिक एसिड (2, 4, 5 T ) आदि को पुष्प के खिलने के पश्चात उपयुक्त मात्रा में तनु कृत करके स्वचालित स्प्रेयर या हस्तचालित स्प्रेयर की सहायता से छिड़का जाता है तो सभी उपचारित पुष्प की अंडाशय का बिना निषेचन की क्रिया के संपन्न हुए ही फलों में विकास हो जाता है |

पार्थेनोकार्पी के प्रकार
A. बीज की उपस्थिति के आधार पर –

  • बीज रहित पार्थेनोकार्पी –
  • बीज युक्त पार्थेनोकार्पी –
  • 1.बीज रहित पार्थेनोकार्पी (Seedless Parthenocarpy ) – पार्थेनोकार्पी की वह प्रक्रिया जिसमें उत्पन्न फल में बीज नहीं होता है बीज रहित पार्थेनोकार्पी कहलाता है |
    Ex. – अनानास, केला आदि में |
  • 2.बीज युक्त पार्थेनोकार्पी (Seeded Parthenocarpy )-पार्थेनोकार्पी की वह प्रक्रिया जिसमें उत्पन्न फल में बीज होता है बीज युक्त पार्थेनोकार्पी कहलाता है |
    Ex. – अंगूर,

B. विकास की प्रकृति के आधार पर

  • 1.प्राकृतिक पार्थेनोकार्पी
    2.अभिप्रेरित पार्थेनोकार्पी
  • 1.प्राकृतिक पार्थेनोकार्पी (Natural Parthenocarpy) – प्रकृति में हो रहे परिवर्तनो या प्राकृतिक कारकों के उतार-चढ़ाव से विकसित होने वाले पार्थेनोकार्पी को प्राकृतिक पार्थेनोकार्पी प्राकृतिक पार्थेनोकार्पीक फल कहां जाता है, तथा यहां प्रक्रिया प्राकृतिक पार्थेनोकार्पी कहलाती हैं |
  • पार्थेनोकार्पी बिना परागण के प्राकृतिक रूप से संपन्न होती है, तब उसे वर्धी पार्थेनोकार्पी कहते है |
    Ex. खीरा, टमाटर, अंजीर, केला, अनानास, आदि मैं इस प्रकार की पार्थेनोकार्पी होती हैं | इसे वातावरणीय पार्थेनोकार्पी भी कहते हैं
  • 2.अभिप्रेरित पार्थेनोकार्पी (Induced Parthenocarpy)- पादप हार्मोन के प्रयोग से उत्पन्न होने वाले पार्थेनोकार्पी को अभिप्रेरित पार्थेनोकार्पी भी कहते हैं इसे ही रासायनिक पार्थेनोकार्पी भी कहा जाता है

पार्थेनोकार्पी का महत्व –

  1. मांसल, रसदार फलों की स्थिति में पार्थेनोकार्पीक फल का खाद्यय महत्व काफी बढ़ जाता है |
  2. बीज रहित फल बीज युक्त फलों की तुलना में उच्च कीमत पर बिकते हैं |
  3. अभिप्रेरित पार्थेनोकार्पी से फलों के उत्पादन की मात्रा तथा निरंतर आपूर्ति की दर बढ़ाई जा सकती है |
  4. इस विधि द्वारा निर्मित फलों में गुदा (pulp) अधिक होता है|
  5. जैम, जेली, सॉस तथा पेय पदार्थों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले फलों के उत्पादन में यह प्रक्रिया काफी महत्वपूर्ण सिद्ध होती है |

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