भगवान श्रीकृष्ण – प्रकृति के रक्षक, प्रकृति के उपासक

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भगवान श्री कृष्ण को सोलह कलाओं का स्वामी माना जाता है, जो जिस रूप में मान ले वह उसी रूप में दिखाई देते हैं | भगवान श्रीकृष्ण प्रकृति से जुड़े हुए भगवान माने जाते हैं | उनके पहनावे से लेकर उनकी लीलाएं प्रकृति का गुणगान करती है |
भगवान श्री कृष्ण हमें प्रकृति से जुड़कर जीवन जीने की कला सिखाते हैं, प्रकृति पूजा सिखाते हैं साथ ही आवश्यकता पड़ने पर प्रकृति की रक्षा करना भी सिखाते हैं |
आज लीला पुरुषोत्तम भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन हैं आज संपूर्ण विश्व कृष्ण की भक्ति के आनंद में लीन हो जाएगा | आज हम जानते हैं कि प्रकृति की रक्षा में भगवान श्री कृष्ण ने हमें किस प्रकार प्रेरित किया |

श्री कृष्ण जन्म और प्रकृति की लीला

भगवान श्री कृष्ण के जन्म के पश्चात वासुदेव जी जब उन्हें नंद के यहां लेकर जाते हैं तब प्रकृति वर्षा के रूप में उनका स्वागत करती है, यमुना जी श्री कृष्ण के चरण स्पर्श करने के लिए उतावली हो रही है तथा शेषनाग वर्षा से उनका बचाव कर रहे हैं | यहां घटनाएं कृष्ण के जीवन में प्रारंभिक घटना के रूप में प्रकृति का वर्णन करती है |

गोवर्धन पर्वत को अंगुली में उठाना –

गोवर्धन पर्वत को अंगुली में धारण करके भगवान श्री कृष्ण ने देवताओं की पूजा अर्चना की बजाए प्रकृति की पूजा अर्चना करने की सीख दी | प्रकृति के द्वारा हमें जो उपहार दिया जाता है उस के बदले उसकी रक्षा करना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होता है| श्री कृष्ण के गोवर्धन पर्वत उठाए जाने के स्वरूप की भी पूजा की जाती है|

भगवान श्री कृष्ण और गौ माता –

भगवान श्री कृष्ण का बचपन गायों के साथ व्यतीत हुआ है, उनकी बांसुरी सुनते ही गाय मंत्रमुग्ध हो जाती थी | अनेक मर्तबा भगवान श्री कृष्ण के द्वारा गायों की रक्षा आताताई राक्षस से की गई थी | गौ रक्षा संरक्षण का संदेश श्री कृष्ण के द्वारा दिया गया जो आज भी प्रासंगिक है |

भगवान श्री कृष्ण का भोजन –

श्री कृष्ण का प्रिय भोजन माखन था, जिसके लिए उन्होंने अनेक बार अपनी माता यशोदा से डांट भी खाई थी कहा जाता है कि जिस दिन भगवान श्री कृष्ण जिस किसी के यहां से माखन चुरा के खाते थे उनके यहां दूध बहुत अधिक मात्रा में होता था |

मोर पंख को धारण करना –

श्री कृष्ण के मुकुट पर सबसे पहले माता यशोदा ने मोर पंख लगाया था मोर पंख सौंदर्य का प्रतीक है | प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग कर, उन्हें धारण कर से जुड़ने का संदेश उनके द्वारा दिया गया |

बांसुरी की धुन –

नंद बाबा द्वारा सबसे पहले श्री कृष्ण की बांसुरी लाकर दी गई थी | बांसुरी की धुन सुनकर मनुष्य के साथ-साथ वन्य प्राणी तथा अन्य प्राणी मंत्रमुग्ध हो जाते थे| बांसुरी मन की शांति का प्रतीक है| भगवान श्री कृष्ण का मानना था कि प्रकृति से जुड़कर ही मन को शांत किया जा सकता हैं |

श्री कृष्ण और चंदन –

चंदन श्री कृष्ण को बहुत प्रिय है | माथे पर चंदन का तिलक मस्तिष्क को तरोताजा कर देता और मन सदा प्रफुल्लित रहता है यह ताजगी का प्रतीक है |

श्री कृष्ण और वैजयंती माला –

श्री कृष्ण के द्वारा राधा और गोपियों के साथ रासलीला खेली जाती थी जब श्री कृष्ण पहली बार रासलीला खेली थी तब वैजयंती की माला राधा रानी के द्वारा उन्हें पहनाई गई थी कृष्ण को यहां फूल और इसकी माला बहुत ही प्रिय है | वैजयंती माला के बीजों से बनी होती है बीज कठोर होते हैं कभी टूटते नहीं है सड़ते नहीं हैं हमेशा चमकदार बने रहती हैं बीज हमेशा भूमि में जाकर अंकुरित होते हैं | अतः सभी को अपनी भूमि / प्रकृति से जुड़कर सदा प्रफुल्लित रहना चाहिए |

भगवान श्री कृष्ण और शंख –

भगवान श्री कृष्ण का प्रिय पांचजन्य शंख समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक था श्री कृष्ण के द्वारा इस्तेमाल किया गया शंख एक अत्यंत दुर्लभ पांचजन्य शंख था इस शंख की ध्वनि पांच मुखो से निकलती थी इसीलिए इसे पांचजन्य शंख कहा गया | इस शंख से निकली हुई पंचध्वनि पांच इंद्रियों और उनके संयम का प्रतीक हैं |

श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं उनका जीवन एक आदर्श है कि इंसान को कैसा होना चाहिए |प्रकृति से जुड़कर प्रकृति के अनुसार चलकर मनुष्य अपना जीवन यापन करें तो प्रकृति के साथ-साथ मानव का कल्याण हैं | गोवर्धन पर्वत उठाने के पूर्व उनका कहना ” हम तो सदा के वनवासी हैं, वन और पहाड़ ही हमारे घर हैं “
प्रकृति के संरक्षण का अनुपम संदेश देती है|

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1 COMMENT

  1. अदभुत लीलाएं है श्री कृष्ण की…. और आपका बखान तो लाजवाब है sir…

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