कोशिका संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई ( Cell – Structural and Functional Unit ) के अंतर्गत कोशिका तथा उससे संबंधित तथ्यों को short notes / one liner के रूप में प्रस्तुत किया गया है | विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए यह बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा |
★ 1590 में जैकेरियस जैनसन से सर्वप्रथम सूक्ष्मदर्शी (Microscope ) की खोज की।
★ रॉबर्ट हुक ने सर्वप्रथम माइक्रोस्कोप की सहायता से 1665 में कॉर्क की कोशिकाओं ( bark cell )को देखा।
★ ल्यूवेनहॉक ने 1675 में जीवित कोशिका ( living cell ) की खोज की।
★ ल्यूवेनहॉक को सूक्ष्म जैविकी का पिता (Father of Cytology) भी कहा जाता है।
★ श्लीडन और श्वान ने 1839 में कोशिका सिद्धान्त (Cell theory) दिया जिसके अनुसार सभी जीव कोशिकाओं के बने होते हैं।
★ विषाणु (Virus), कुछ शैवाल जैसे- वाउचेरिया (Vaucheria) तथा एक कोशिकीय जीव कोशिका सिद्धान्त के अपवाद (exceptions) हैं।
★ यूकैरियोटिक कोशिकाओं में झिल्ली युक्त केन्द्रक तथा कलाबद्ध कोशिकांग (membrane bound cell organelles) पाये जाते हैं।
★ प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में केन्द्रक बिना केन्द्रक कला के होता है तथा इसके जीवद्रव्य में कोशिकांग नहीं पाये जाते । ( exception – 70s Ribosome )
★ सभी पादप कोशिकाओं में कोशिका भित्ति पायी जाती है और यह भित्ति कोशिका को सुरक्षा तथा आधार प्रदान करती है।
★ एण्डोप्लाज्कि रेटिकुलम को सर्वप्रथम गारनियर (Garnier, 1897) ने देखा।
★ पोर्टर (Porter, 1961) ने कहा “एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम एक बहुत ही जटिल, महीन, शाखान्वित, परस्पर जुड़ी। है जो केन्द्रक से परिधि या प्लाज्मा मेम्ब्रेन तक फैला रहता है।”
★ सिस्टर्नी, वेसीकिल्स तथा नलिकाएँ मिलकर एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम का निर्माण करती हैं।
★ ER (अन्तःप्रद्रव्यी जालिका) कोशिका आधार, अन्तराकोशिका संवहन, अन्तराकोशिका उद्दीपन आदि प्रदान करता है।
★ ER उपापचय क्रिया, प्रोटीन संश्लेषण, ग्लाइकोजन के उपापचय, ए. टी. पी. संश्लेषण, गॉल्जी निर्माण, केन्द्रक कला निर्माण तथा आनुवंशिक पदार्थों के अभिगमन में सहायक होता है।
★ ग्रीक शब्द Mito = thread, धागे तथा Chondrion = granule, कण-से माइटोकॉण्ड्रिया शब्द प्रचलित हुआ।
★ फ्लेमिंग (Flemming, 1882) ने सर्वप्रथम माइटोकॉण्ड्रिया को देखा। तथा फिलिया (Filia) नाम दिया।
★ अल्टमान (Altman, 1894) ने इसका विवरण बायोप्लास्ट के नाम से दिया।
★ सी. बैण्डा (Benda, 1879) ने इन्हें माइटोकॉण्ड्रिया नाम दिया।
★ ऐसे भागों में जिनको अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है, माइटोकॉण्ड्रिया बहुतायत में पाये जाते हैं।
★ माइटोकॉण्ड्रिया की आकृति धागे के समान, कण के रूप में, वेसीकिल्स के रूप में होती है।
★ माइटोकॉण्ड्रिया की भीतरी कला में पट्टिका के रूप में अंगुलीकार क्रिस्टी ( Cristae ) होते हैं।
★ इलेक्ट्रॉन ट्रान्सपोर्ट पार्टिकिल्स में एन्जाइम होते हैं जो इलेक्ट्रॉन ट्रान्सपोर्ट तंत्र तथा ऑक्सीडेटिव फॉस्फोरिलेशन में सहायक होते हैं।
★ यकृत की कोशिका से निकाले गये माइटोकॉण्ड्रिया में प्रोटीन्स 70% तथा लिपिड 25-30% होते हैं।
★ माइटोकॉण्ड्रिया का डी. एन. ए. माइटोकॉण्ड्रिया की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आनुवंशिक सूचनाएँ पहुँचाता है।
★ माइटोकॉण्ड्रिया, क्रेब्स चक्र तथा श्वसन श्रृंखला की क्रिया करते हैं।
★ माइटोकॉण्ड्रिया पूर्ववर्ती माइटोकॉण्ड्रिया से जन्म लेते हैं।
★ माइटोकॉण्ड्रिया को अन्तराकोशिकीय परजीवी के रूप में भी जाना जाता है, जो कि विकास के आरम्भ में ही यूकैरियोटिक कोशिका में प्रवेश कर गए होंगे और आज वे कोशिका के साथ सहजीवन व्यतीत करते हैं।
★ लाइसोसोम्स पाचक काय ( digestive body ) है।
★ लाइसोसोम की खोज क्रिश्चियन डी ड्यूवे (Christian de Duve, 1955) ने की थी।
★ सबसे बड़ा लाइसोसोम स्तनि गुर्दे (kidney ) में मिलता है।
★ लाइसोसोम्स में लगभग 24 एसिड हाइड्रोलेज एन्जाइम पाये जाते हैं।
★ लाइसोसोम्स बहुरूपी (polymorphic ) होते हैं। ये रूप हैं- (i) संचयन कण, (ii) फैगोसोम्स या पाचक रिक्तिकाएँ, (iii) अवशिष्ट काय, (iv) स्वतःभोजित रिक्तिकाएँ।
★ लाइसोसोम्स अन्तराकोशिकीय पाचन, कोशिका के बाहर पाचन, स्वयं पाचन करते हैं तथा माइटोसिस की क्रिया प्रारम्भ करते हैं।
★ लाइसोसोम्स को “आत्महत्या की थैली” भी कहा जाता है।
★ गॉल्जीकाय की खोज सर्वप्रथम जिओर्जा (Georga, 1867) ने की।
★ गॉल्जीकाय का विवरण सर्वप्रथम केमिनो गॉल्जी (Golgi, 1898) ने दिया।
★ गॉल्जीकाय को डिक्टिओसोम्स (अकशेरुकियों में), लिपोकॉण्ड्रिया (बेकर, Baker, 1957), गॉल्जी उपकरण, गॉल्जी कॉम्पलेक्स आदि भी कहते हैं।
★ गॉल्जीकाय का निर्माण सिस्टर्नी, वेसीकिल्स तथा वैक्योल्स से होता है।
★ गॉल्जीकाय का स्राव क्रिया से घनिष्ठ सम्बन्ध है। इसके अतिरिक्त ये माइटोकॉण्ड्रिया को क्रियाशील करता है, लिपिड्स, लौह तथा ताँबा का अवशेषण विसंचय करता है।
★ केन्द्रक की खोज, सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्रॉउन (Robert Brown, 1931) ने की।
★ केन्द्रक कोशिका का सबसे महत्वपूर्ण कोशिकांग है।
★ कोशिका में होने वाली सभी क्रियाओं पर केन्द्रक नियंत्रण रखता है।
★ केन्द्रक के मुख्य अवयव हैं- (i) केन्द्रक कला, (ii) केन्द्रक द्रव्य, (iii) केन्द्रिका, (iv) क्रोमैटिन
★ आर. एन. ए. संश्लेषण तथा संचय मुख्य रूप से केन्द्रिका में होता है।
★ कोशिका विभाजन के समय क्रोमैटिन तन्तु छोटे और मोटे होकर गुणसूत्रों का निर्माण करते हैं।
★ एन्जाइम का उत्पाद, आर. एन. ए. का संश्लेषण, वृद्धि तथा प्रजनन का नियमन केन्द्रक द्वारा ही होता है।
★ प्लास्टिड्स पादप कोशिकाओं में ही मिलते हैं।
★ प्लास्टिड्स तीन प्रकार के होते हैं- (i) ल्यूकोप्लास्ट, (ii) क्रोमोप्लास्ट, (iii) क्लोरोप्लास्ट ( Chloroplast )
★ उच्च कोटि के हरे पौधों में क्लोरोप्लास्ट की उत्पत्ति पूर्ववर्ती क्लोरोप्लास्ट से होती है, जबकि निम्न कोटि के पौधों में इस उत्पत्ति पूर्व उपस्थित क्लोरोप्लास्ट के विभाजन से होती है।
★ राइबोसोम्स को सर्वप्रथम क्लॉडे (Claude, 1941) ने देखा।
★ पैलेडे (Palade, 1955) ने सर्वप्रथम इसका विवरण दिया।
★ Mg2+ मैग्नीशियम आयन्स की उपस्थिति में राइबोसोम आपस में जुड़कर डाइमर (dimer) तथा पॉलीमर (polymer का निर्माण करते हैं।
★ राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेते हैं।
★ पक्ष्माभ तथा कशाभ कोशिका द्रव्यी धागे समान संरचनाएँ हैं।
★ पक्ष्माभ तथा कशाभ प्रचलन तथा भोजन ग्रहण करने में कोशिका की सहायता करते हैं।
★ पक्ष्माभों में दो प्रकार की गति होती है-तुल्यकालक तथा अनुक्रमिक।
★प्रत्येक पक्ष्माभ, पहले प्रभावशाली स्ट्रोक फिर उपलब्धि-स्ट्रोक करते हैं। इन्हीं स्ट्रोक से ये कोशिका को आगे बढ़ने सफल होते हैं। कशाभ में तरंगित गति होती है।
★ कभी-कभी तरंगित गति शिखर से आधार की ओर भी होती है।
★ प्रत्येक पक्ष्माभ तथा कशाभ की काट में दो केन्द्रीय तन्तु तथा नौ जोड़ी परिधीय तन्तु मिलते हैं।
★ पक्ष्माभ तथा कशाभ का रासायनिक संघटन इस प्रकार है-प्रोटीन 70-80%, लिपिड्स 15-20%, कार्बोहाइड्रेट्स! 5%, न्यूक्लिओटाइड्स लेशमात्र, ए. टी. पी. केन्द्रीय तन्तु परिधीय तन्तुओं की भुजाओं में पाया जाता है।
★ प्रत्येक कोशिका में सेन्ट्रिओल्स प्रायः दो तथा कभी-कभी एक होता है।
★ सेन्ट्रिओल्स सेन्ट्रोसोम में स्थित रहते हैं। ये कोशिका विभाजन के लिए उत्तरदायी है।
★ सेन्ट्रिओल्स केवल जन्तु कोशिकाओं में ही पाये जाते हैं।
★ कोशिका अन्तर्विष्ट के अन्तर्गत निम्नलिखित पदार्थ आते हैं-
मण्ड कण, ग्लाइकोजन कण, वसा गोलिकाएँ, ऐल्यूरॉन कण उत्सर्जी पदार्थ, लावी उत्पाद राय रखे।
★ प्रत्येक कोशिका के मुख्य कोशिकांग है-माइटोकॉण्ड्रिया, गॉल्जीकाय, लाइसोसोम्स, एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम, प्लास्टि सेन्ट्रिओल्स।
★ कोशिकीय कंकाल दो रूप में मिलता है-सूक्ष्मनलिकाएँ (Microtubules) तथा सूक्ष्म तन्तु (Micro filamenta)
★ नांगेली (Nageli, 1855) ने सर्वप्रथम “प्लाज्मा मेम्ब्रेन” (Plasma Membrane) शब्द का प्रयोग किया।
★ डेनियली तथा डावसन (Danielli and Davson, 1952) ने बताया कि प्लाज्मा मेम्ब्रेन में लिपिड अनुओं की दो स्तर प्रोटीन को दो स्तरों के मध्य स्थित रहती हैं।
★ सिंगर तथा निकोलसन (Singer and Nicohison, 1972) ने फ्लूइड मोजेक सिद्धान्त प्रतिपादित किया।
★ सिंगर तथा निकोलसन (Singer and Nicohlson, 1972) ने कहा कि “प्लानमा मेम्ब्रेन लिपिड के समूह में प्रोटीन के प्लावी बर्फ” के समान हैं।
★ ग्लाइकोलिपिड्स तथा ग्लाइकोप्रोटोन्स की सहायता से कोशिकाएँ अपने ही समान कोशिकाओं की पहचान करने में समर्थ होती है।
★ प्लाज्मा मेम्ब्रेन की औसत मोटाई 75A होती है।
★ प्लाज्मा मेम्ब्रेन में 5% कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
★ प्लाज्मा मेम्ब्रेन के रूपान्तरण है- (i) सूक्ष्मांकुर, (ii) अन्तर्वलन, (iii) डेस्मोसोम्स, (iv) अन्तअंगलित (v) टर्मिनल बार (vi) टाइट जंक्शन।
★ रॉबर्टसन (Robertson, 1959) ने इकाई झिल्ली की संकल्पना प्रस्तुत की।
★ प्लाज्मा मेम्ब्रेन वरणात्मक अथवा विभेदकीय पारगम्य झिल्ली है।
★ कैगोसाइटोसिस क्रिया वह क्रिया है जिसमें कोशिकाएँ भोजन ठोस के रूप में लेता है।
★ पॉलिसकराइड शर्कराओं के प्रोटीन अमीनो अम्लों के तथा न्यूक्लिइक अम्ल न्यूक्लिओटाइडों के बहुलक है।
★ होमोसेकेराइड के जल अपघटन से क्रमशः एक ही प्रकार के मोनोसेकेराइड प्राप्त होते हैं, जबकि हेटेरोपॉली सैकेण्ड के जल अपघटन से दो या दो से अधिक प्रकार के मोनोसेकेराइड प्राप्त होते हैं।
★ स्टार्च तथा ग्लाइकोजन मुख्य भोजन संचयी पॉलीसेकेराइड है।
★ सेलुलोज, काइटिन प्रमुख रचनात्मक पॉलीसेकेराइड हैं।
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