“हे मानव मैं जंगल हूँ “

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हे मानव मैं जंगल हूँ,
प्रकृति का आभूषण,
पृथ्वी का श्रृंगार हूँ,
मानव की प्राण वायु,
जीवों  का श्वास हूँ |
बंजर धरती की प्यास,
जीवन का आधार हूँ |
हे मानव मैं जंगल हूँ


आदिम सभ्यता का प्रतीक
नई सभ्यता का राज हूं |
लाखों जीव जंतुओं का आश्रय,
वनवासियों के जीवन का आधार हूँ |
मुझे छोड़ सीमेंट के जंगल बनवाया ,
उसी जंगल का आधार हूँ |
हे मानव मैं जंगल हूँ


प्रकृति का आभूषण
पृथ्वी का श्रृंगार हूँ,
वनवासियों के रोजगार का साधन,
प्राणियों का संसार हूँ, 
बहती प्राणवायु का आधार हूँ |

हे मानव मैं जंगल हूँ


हे मानव,
कैसे कहूं अपनी व्यथा
सीमित कर दिया है तूने ,
काट काट कर के मुझको,
कितना समझाया मैंने
रोक जरा आबादी,
पर रोक दिया बढ़ना  मुझको,
कहीं लगा जंगल में आग,
घटा दिया तुमने मुझको,
क्या ?  किंचित भी दुख नहीं है तुझको
हे मानव मैं जंगल हूँ

हे मानव,
तुझको आगाह अभी  करता हूं
आने वाले कल का,
राज अभी  कहता हूं |
जब मैं नहीं रहूंगा इस दुनिया में
प्राणवायु कहां से लाओगे?
छोड़ धरा की हरियाली,
क्या कागज के फूल खिलाओगे?
सीमेंट के जंगल बनाकर,
उसमें जीवन कहां से लाओगे?
अपने संग ले आता हूं वर्षा को,
बहती हवा संग,
बारिश कहां से लाओगे?


हे मानव, समय अभी बाकी है
वृक्ष लगाकर बच सकते हो,
बंजर धरती को,
हरा भरा कर सकते हो,
वृक्ष दान कर
कुछ नया कर सकते हो |


                शिव एफ.
शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय कटंगी







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