Chapter 2 जैविक वर्गीकरण (Biological classification)

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जैविक वर्गीकरण (Biological classification) , जीवधारियों को समानता एवं विषमताओं के आधार पर निश्चित नियमों एवं सिद्धान्तों के अनुसार, विभिन्न समूहों में विभाजित करने को कहते हैं।

KEY POINTS TO REMEMBER

  • हिप्पोक्रेट्स एवं अरस्तु ने जीवों को वर्गीकृत करने का प्रथम प्रयास किया।
  •  जन्तुओं के प्रथम वर्गीकरण का श्रेय ग्रीक के दार्शनिक अरस्तू को जाता है, जिन्हें ‘जन्तु विज्ञान का जनक” कहा जाता है।
  •  थियोफ्रेस्टस जिन्हें ‘वनस्पति विज्ञान का जनक’ कहा जाता है, ने पादप स्वभाव के आधार पर समस्त पादपों को चार समूहों में विभाजित किया। इन्होंने 500 पादपों को शाक (Herbs), उपधूप (Undershrub), सूप (Shrub ) तथा वृक्ष (Tree) जैसे समूहों में विभेदित किया।
  • थियोफ्रॉस्टस ने अपना वर्गीकरण ‘हिस्टोरिया प्लैटेरम (Historia Plantarum) नामक पुस्तक में दिया। 
  • समस्त जीवधारियों को समानता एवं विषमताओं के आधार पर निश्चित नियमों एवं सिद्धान्तों के अनुसार, विभिन्न समूहों में विभाजित करने को जैविक वर्गीकरण (Biological classification) कहते हैं।
  •  जैविक वर्गीकरण से जीवधारियों की विविधता (Diversity of life) तथा उनके परस्पर सम्बन्धों का ज्ञान होता है।
  •  Taxonomy वर्गिकी शब्द डी कैण्डोली ने दिया। 
  •  वर्गीकरण की तीन पद्धतियाँ प्रस्तावित हैं :
  1.  वर्गीकरण की कृत्रिम पद्धति (Artificial System of Classification) – इसमें पौधों का केवल एक या दो लक्षणों के आधार पर वर्गीकरण किया जाता है। उदाहरण-लिनियस का वर्गीकरण ।
  1.  वर्गीकरण की प्राकृतिक पद्धति (Natural System of classification) – इसमें आकारकीय (Morp- hological) तथा अन्य सभी मुख्य-मुख्य सम्बन्धित लक्षणों के आधार पर जीवधारियों को वर्गीकृत किया जाता है। उदाहरण- वैन्थम एवं हुकर का वर्गीकरण।
  1. वर्गीकरण की जातिवृत्तीय पद्धति (Phylogenetic System of Classification ) — इसमें जीवधारियों को उनके जातिवृत्तीय सम्बन्धों (phylogenetic relationship) तथा विकास क्रम (evolutionary sequence)) के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। उदाहरण- एंग्लर एवं प्रेन्टल का वर्गीकरण।
  • जववर्गिकी विज्ञान जूलियन हक्सले की देन है।
  • जीवों के वर्गीकरण हेतु प्रमुख रूप से दो वर्गीकरण ज्यादा प्रचलित हुए –   (1) दो-जगत वर्गीकरण एवं (2) पाँच-जगत वर्गीकरण।
  • लीनियस ने सभी जीवधारियों को प्लाण्टी (Plantae) तथा एनीमेलिया (Animalia) दो जगतों (kingdoms) में वर्गीकृत किया। एककोशिकीय प्रोटोजुअन्स (unicellular protozoans) तथा बहुकोशिकीय मेटोजुअन्स (multicellular metozoans) को एनिमेलिया जगत् में तथा जीवाणु, कवक (Fungi), शैवाल (Algae), लिवरवर्ट्स, मॉस (Mosses), नग्नबीजी (Gymnosperm) तथा पुष्पी पौधों को प्लाण्टी जगत् में रखा गया।
  • कैरोलस लिनियस ने द्वि-जगत वर्गीकरण तथा द्विनाम नामकरण प्रणाली को प्रस्तुत किया। इन्हें वर्गिकी का जनक कहा जाता है।
  • कोपलैण्ड ने जीवों को चार जगतों में वर्गीकृत किया। ये जगत हैं – मोनेरा (Monera), प्रोटोकटिस्टा (Protoctista),प्लान्टी (Plantae) और ऐनिमैलिया (Animalia) ।
  •  ह्रिटेकर (Whittaker) ने 1969 में समस्त जीवधारियों की आधुनिक पाँच जगत् वर्गीकरण पद्धति (Five kingdom system) प्रस्तावित की जिसका पूरे विश्व के जीवशास्त्रियों (Biologists) ने अनुकरण किया।
  •  जीवधारियों के वर्गीकरण की पाँच जगत् पद्धति निम्नलिखित तथ्यों पर आधारित है- (i) कोशिका संरचना – प्रोकैरियोटिक अथवा यूकैरियोटिक, (ii) दैहिक संगठन- एककोशिकीय अथवा बहुकोशिकीय, (iii) पोषण विधि-स्वपोषी अथवा विषमपोषी (Heterotroph), (iv) प्रजनन की विधि तथा (v) जातिवृत्तीय सम्बन्ध (Phylogenetic relationship)।
  • पाँच-जगत वर्गीकरण में संसार के सभी जीवों को पाँच जगतों में विभाजित किया गया है-(1) मोनेश (2) प्रोटिस्टा (3) कवक, (4) प्लान्टी, एवं (5) एनिमेलिया ।
  • वायरस तथा वाइरॉइड्स को वर्गीकरण की पाँच जगत् प्रणाली में नहीं रखा गया है, क्योंकि इनमें कोशिकीय संगठन (Cellular organization) का अभाव होता है।
  • जगत प्रोटिस्टा को वर्गीकरण का कूड़ादान (Dustbin of classification) भी कहते हैं क्योंकि इसमें विभिन्न समूहों; जैसे – शैवाल, कवक एवं प्रोटोजोआ के एक कोशिकीय एवं मण्डलीय आद्य यूकैरियोट्स को शामिल किया गया है।
  • युग्लीना (Euglena) को पादप एवं जन्तु दोनों जगतों में रखा गया है, क्योंकि यह दोहरा जीवन व्यतीत करता है। प्रकाश की उपस्थिति में यह स्वपोषित जीव की भाँति तथा प्रकाश की अनुपस्थिति में परपोषित जीव की भाँति कार्य करता है।
  •  जीवाणु आकृति में गोलाकार, छड़ाकार, कौमा आकार (comma shaped) अथवा सर्पिलाकार हो सकते हैं।
  •  प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में संगठित केन्द्रक (organized nucleus) नहीं होता। इसमें केन्द्रक कला और न्यूक्लियोलस का अभाव होता है। केन्द्रक पदार्थ DNA तन्तुओं का बना होता है जिसमें हिस्टोन प्रोटीन नहीं होते। इन कोशिकाओं में कलाओं से घिरे (Membrane bound) कोशिकांग भी नहीं होते।
  •  जीवाणुओं में अलैंगिक जनन द्विखण्डन (Binary fission) द्वारा होता है। 20-30 मिनट के अन्तराल में एक कोशिका से दो बराबर कोशिकाएँ बन जाती हैं।
  •  जीवाणुओं में लैंगिक जनन आनुवंशिक पुनर्योजन (genetic recombination) द्वारा होता है, जो रूपान्तरण (transformation) पराक्रमण (transduction) और संयुग्मन (conjugation) को विधि से होता है। 
  • एक्टिनोमाइसिटीज पहले कवकों (fungi) में माने जाते थे लेकिन अब जीवाणुओं का एक समूह माने जाते हैं।
  • आकवैक्टीरिया प्राचीनतम जीवित जीवाश्म (oldest living fossils) हैं। ये जीवाणुओं का एक पुरातन समूह है, जो असामान्य परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं।
  •  कुछ आर्कीबैक्टीरिया ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में (जैसे- मेथेनोजिन्स) कुछ उच्च लवण सान्द्रता वाले जलाशयों में (हेलोफिल्स) और कुछ अधिक ताप एवं अम्ल वाले एवं गर्म सल्फर युक्त झरनों में (चर्मोएसिडोफिल्स) पाये जाते हैं।
  •  सायनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल) प्रकाश संश्लेषी जीवाणु है।
  • वे एककोशिकीय, कोलोनियल (colonial) तन्तुमय (filamentous) होते हैं। कशाभिकाओं (flagella) का पूर्ण अभाव होता है। इनकी कोशिकाओं में न्यूक्लियोइड (nucleoid) तथा 70S राइबोसोम्स के अतिरिक्त प्रकाश-संश्लेषों लैमिली तथा गैस रिक्तिकाएँ होती हैं।
  • अनेक सायनोबैक्टीरिया नाइट्रोजन स्थिरीकरण (Nitrogen fixation) करते हैं।
  •  जातिवृत्तीय दृष्टिकोण से जगत् प्रोटिस्टा प्रोकैरियोटी मोनेरा तथा जटिल जीवधारियों (कवक, जन्तु तथा पादप) के बीच की संयोजी कड़ी (Connecting link) है।
  •  डायनोफ्लैजिलेट्स की कोशिकाभित्ति कवचनुमा प्लेटों का निर्माण करती है।
  • लाल ज्वार (Red Tide) गोन्योलैक्स (Gonyaulax) नामक डायनोफ्लैजिलेट्स की संख्या में अति वृद्धि के कारण होता है।
  •  लाल सागर का रंग लाल ट्राइकोडेस्मियम (Trichodesmium) के कारण होता है।
  •  डायटम्स के फ्रस्क्यूल्स (Frustules) दो अद्धांशों के बने होते हैं। एक अद्धीश दूसरे में अतिव्यापित रहता है। जैसे- साबुनदानी। डायटम की कोशिकाभित्तियों में सिलिका (Silica) व्याप्त होता है। इनके जीवाश्मों के विशाल भण्डार डायटमी मृत्तिका (Diatomaceous Earth) कहलाते हैं।
  •  युग्लीना में जन्तुसम (अनाग्रहणी) तथा पादप सम (प्रकाश-संश्लेषी) दोनों प्रकार की जीवन पद्धतियाँ (life styles) पायी जाती हैं।
  •  कवक पर्णहरित रहित (Achlorophyllous) यूकैरियोटी विषमपोषी (Heterotrophic) जीवधारी हैं जिनमें अवशोषी प्रकार (Absorptive) की पोषण विधि पाई जाती है। 
  • जीवन चक्र और लैंगिक जनन के फलस्वरूप बने बीजाणुओं (spores) के आधार पर कवकों को चार वर्गों (फाइकोमाइसिटीज, एस्कोमाइसिटीज, वैसीडियोमाइसिटीज तथा ड्यूटिरोमाइसिटीज) में वर्गीकृत किया गया है।
  •  फाइकोमाइसिटीज, एस्कोमाइसिटीज तथा बैसीडियोमाइसिटीज में लैंगिक जनन के फलस्वरूप क्रमश: (a) ऊस्पोर/ जाइगोस्पोर, (b) एस्कोस्पोर्स तथा वैसीडियोस्पोर्स बनते हैं। 
  • ड्यूटिरोमाइसिटीज में लैंगिक जनन नहीं होता ।
  •  राइजोपस तथा म्यूकर को पिन मोल्ड भी कहते हैं। इनकी युग्मकधानी को संयुग्मकधानी (Coenogametangium) कहते हैं, क्योंकि इनमें एक से अधिक केन्द्रक होते हैं।
  •  लाइकेन (Lichen) सहजीवी पादप हैं जो शैवाल तथा कवक (Fungus) के परस्पर सहयोग से जीवनयापन करते हैं। इसके शैवाल घटक को फाइकोबायांट (Phycobiont) कहते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं। तथा इसके कवक घटक की माइकोबायांट (Mycobiont) कहते हैं। ये शैवाल को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • कार्ल वूज (Corl Woese) तथा जी. ई. फॉक्स (G.E. Fox) ने सन् 1968 में तीन डोमेन पद्धति को प्रस्तुत किया । इन्होंने सभी यूकैरियोट्स के लिए यूकैरिया (Eukarya) जगत तथा प्रोकैरियोट्स के लिए यूबैक्टीरिया (Eubacteria) एवं आर्किया (Archaea) समूह प्रस्तुत किया।  
  • इस पद्धति में कोशिकीय जैवरूपों को तीन डोमेन (1) आर्की, (ii) बैक्टीरिया, एवं (iii) यूकैरियोटा में वर्गीकृत किया गया है।
  • जॉन रे (John Ray) ने स्पीशीज शब्द प्रतिपादित किया।
  • प्रत्येक स्पीशीज का वैज्ञानिक नाम दो शब्दों का बना होता है। पहला शब्द वंशीय नाम (Generic name) तथा दूसरा शब्द जातीय नाम (Specific name) कहलाता है।
  • बीजरनिक (Beijernick) ने वाइरस शब्द दिया।
  •  वाइराइड्स केवल RNA से निर्मित होते हैं, इनमें प्रोटीन, आवरण का अभाव होता है।
  • प्रिऑन्स संक्रामक प्रोटीन अणु है, इसमें न्यूक्लिक अम्लों का अभाव होता है। 
  • वायरस में स्वयं पुनरावृत्ति की क्षमता नहीं होती है क्योंकि उनमें अपने आनुवंशिक पदार्थ का उपयोग करने के लिए आवश्यक कोशिकीय प्रणाली का अभाव होता है।
  • अधिकांश पौधों के वाइरस में RNA होता है। 
  • अधिकांश जन्तुओं के वाइरस में DNA होता है।
  • रवे (Crystal) के रूप में वाइरस को स्टेनले (Stanley, 1935) ने पृथक्कृत किया। 
  • ल्यूवेनहॉक (1674) ने सबसे पहले बैक्टीरिया की खोज की थी
  • रॉबर्ट कोच ने सर्वप्रथम एन्थ्रेक्स तथा तपेदिक के बैक्टीरिया को पृथक् किया था।
  • जोसेफ लिस्टर (J. Lister) ने 1878 में बैक्टीरिया संवर्धन माध्यम (Culture medium) में उगाया। 
  • नाखूनों तथा बालों पर उगने वाले कवक को केरेटेनोफिलिक (Keratenophillic) कवक कहते हैं। 
  • सबसे मुख्य टॉक्सिन जो कवक Aspergillus flavus द्वारा उत्पन्न होता है, Aflatoxin कहलाता है।
  • लाइकेन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम Theophrastus ने किया था।
  • Cladonia rangiferina, Reindeer moss कहते हैं। यह एक लाइकेन है।
  • ई. जे. बटलर – भारतीय कवक विज्ञान व पादप रोग विज्ञान के पिता ।
  • पादप जगत् का पिगमी चूहा – एस्पर्जिलस फ्लेक्स।
  • सबसे छोटा कवक-यीस्ट (सैकेरोमाइसीज सरवीसी) ।
  • सबसे बड़ा कवक-शहद कवक ( आर्मीलेरिया ओस्टोया) ।
  •  बायोब्लीचिंग-फेनरोकैले क्राइसोस्पोरियम कवक ।
  • स्पारूलिना एक प्रोटीन युक्त नीली-हरी शैवाल है जिसे चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  •  डेंगू ज्वर एक RNA विषाणु जनित रोग है जो एडिश ईजिप्टी (Aedes aegypti) नामक मच्छर द्वारा फैलता है।

जैविक वर्गीकरण से जुड़े हुए महत्वपूर्ण बिन्दुओं को आपके समक्ष प्रस्तुत किया गया उम्मीद करेंगे कि ये नोट्स आपको पसंद आएंगे। Chapter 1 Living Organism के नोट्स देखने के लिए आप क्लिक करें .

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