अवशेषी अंग
प्राणियों के शरीर में कुछ ऐसे अंग होते हैं जिनका कोई कार्य नहीं होता फिर भी रचनाएं हजारों वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है ऐसे अंगो को अवशेषी अंग कहते हैं ऐसा माना जाता है कि पूर्वजों में ये अंग क्रियाशील थे किंतु परिवर्तनों के कारण अब इन जंतुओं में इनका कोई उपयोग नहीं रहा तथा यह निष्क्रिय हो गये | लैमार्क ने जैव विकास v की प्रक्रिया को समझाने के लिए उपार्जित लक्षणों की वंशागति ( Inharitance of acquired characters ) की परिकल्पना को प्रस्तुत किया था अवशेषी अंग इस परिकल्पना को प्रमाणित करते हैं |
(I) मनुष्य में अवशेषी अंग- मनुष्य में लगभग 200 से ज्यादा अवशेषी अंग पाए जाते हैं जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण अवशेषी अंग निम्नलिखित हैं –
- निमेषक पटल (Nictitating Membrane Or Plica Semilunaris )- हमारी आंख की भीतरी किनारे पर एक छोटी सी लाल अर्धचंद्राकार झिल्ली उस निमेषक पटल का अवशेष है जो मेंढक, पक्षियों, खरगोश आदि में पाई जाती है|
- कर्ण पल्लवों की पेशियां (Muscles of Pinna )- हमारे कर्ण पल्लवों से संबंधित कुछ पेशियां केवल अवशेष के रूप में पाई जाती है जिससे हमारे कर्ण पल्लव अचल हो गए जबकि घोड़े, गधे, हाथी, बंदर गाय, आदि में ये पेशियां अधिक विकसित होती है जो कर्ण पल्लवों को हिलाने का कार्य करती है|
- कृमिरूप परिशेषिका (Vermiform Appendix)- शाकाहारी स्तनधारियों में सैलूलोज के पाचन के लिए सीकम होती है मनुष्य में यहां एक अवशेषी अंग के रूप में मिलती है क्योंकि मनुष्य के सर्वाहारी हो जाने से इसकी उपयोगिता कम हो गई तथा अबकेवल इसका अवशेष ही पाया जाता है |
- पुच्छ कशेरुकाऐ (tail Vertebrae)- मनुष्य में पूछ का अभाव होता है फिर भी कशेरुक दंड के अंत में 3-5 तक अर्ध पुच्छ कशेरुकाऐ (tail Vertebrae) पाई जाती है जो आपस में जुड़ कर कॉक्सिक्स (Cocccyx ) निर्माण करती है |
- त्वचा के बाल( Hair of Skin)- बंदर, घोड़ा, बकरी, भेड़, आदि जंतु के शरीर पर घने बाल होते हैं |यह बाल ताप नियंत्रण में सहायता करते हैं मानव में इनका कोई कार्य नहीं होता फिर भी शरीर पर बाल पाए जाते हैं जो अवशेषी रूप में होते हैं |
- अकल दाढ़(Wisdom Tooth)- तीसरा मोलर दन्त प्राइमेट स्तनियो में सामान्य होता है मनुष्य में इसका उपयोग नहीं होता यह दंत देर से निकलता है तथा अर्ध विकसित होता हैं |
- II. अन्य जंतुओं में अवशेषी अंग(Vestigial Organs in Other Animals )
- व्हेल एवं अजगर की पश्चपाद (Hind limbs in Whale and python ) – व्हेल में श्रोणि मेखला तथा पश्चपाद के अवशेष पाए जाते हैं इससे ज्ञात होता है कि व्हेल के पूर्वजों में कभी पाद जैसी संरचना रही होगी इसी प्रकार सर्पो में अग्र व पश्च पाद एवं उनकी मेखलाये पाई जाती है किंतु अजगर तथा बोवा में इनके अवशेष पाए जाते हैं इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि पादहीन सर्पो का विकास पाद युक्त सरीसृप से हुआ होगा
- अवशेषी पंख (Vestigial Wings)- पक्षियों में पंख उड़ने का कार्य करते हैं कुछ पक्षियों का शरीर इतना भारी हो गया है कि उन्हें उड़ने की बजाय दौड़ने की आदत डाल ली | ना उड़ सकने के कारण इनके पँख अवशेषी रूप में पाए जाते हैं अफ्रीका में पाए जाने वाला शुतुरमुर्ग, आस्ट्रेलिया में मिलने वाला ऐमू एवं केसोवरी तथा न्यू गिनी में मिलने वाला कीवी आदि उदाहरण हैं|
- व्हेल के कर्ण पल्लव (Pinna in Whales)- जलीय स्तनधारियों में कर्ण पल्लव धीरे-धीरे निष्क्रिय कर केवल अवशेष के रूप में रह गए हैं बाहा कर्ण हवा से ध्वनि तरंग ग्रहण कर सकती किंतु जल में इनका कोई उपयोग नहीं होता है और तैरने में बाधा उत्पन्न करते थे |
- घोड़े के पादो की स्प्लिंट अस्थियाँ (Splint Bones in Horse Limbs)- घोड़े के अग्र पादों में 4 तथा पश्च पादो में 3 -3 अंगुलियां थी | सभी अंगुली नखर युक्त थी और सभी जमीन को छूती थी तथा चलने में सहायक थी | तेजी से दौड़ने के लिए पादो में केवल तीसरी अंगुली का अत्यधिक विकास हुआ और उसकी अग्र भाग ने खुर को बनाया अन्य अंगुलियां धीरे-धीरे हाषित हो गई घोड़े में हाषित अंगुलियों की अस्थियां के अवशेष अभी भी पाए जाते हैं |
- III. पादपों में अवशेषी अंग ( Vestigeal Organ in Plants )- पौधों में अनेक प्रकार के अवशेषी अंग पाए जाते हैं जैसे कैक्टस पौधे में कांटों में रूपांतरित पत्तियां, कुछ कैक्टस पौधों में मोटीक्यूटिन परत के नीचे निष्क्रिय रंध्र |
- अवशेषी अंगों का महत्व-
- जैव विकास की प्रक्रिया को समझने में अवशेषी अंग उपयोगी सिद्ध होते हैं|
- अवशेषी अंग की प्रकृति से स्पष्ट होता है कि वर्तमान काल के जंतु पूर्व काल के जंतुओं से उत्पन्न हुए हैं|
- अनुकूलन की प्रक्रिया को समझने में अवशेषी अंग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं|