“हे मानव मैं जंगल हूँ “

हे मानव मैं जंगल हूँ, प्रकृति का आभूषण, पृथ्वी का श्रृंगार हूँ, मानव की प्राण वायु, जीवों  का श्वास हूँ | बंजर धरती की प्यास, जीवन का आधार हूँ | हे मानव मैं जंगल हूँ आदिम सभ्यता का प्रतीक नई सभ्यता का राज हूं | लाखों जीव जंतुओं का आश्रय, वनवासियों के जीवन का आधार … Continue reading “हे मानव मैं जंगल हूँ “